ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः। चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः । प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥
श्री शालिग्राम जी सुनो विनती हमारी अर्ज हमारी
जो वरदान दया कर पाऊ,
प्रात समय उठ मंजन कर के प्रेम सहित मैं अस्नान करवाऊ,
चन्दन धुप दीप तुलसी धर वर्ण वर्ण के पुष्प चदाऊ,
श्री शालिग्राम जी सुनो विनती हमारी
आप विराजो प्रभु रतन सिंगासान घंटा शंख मिरधंग बजाओ
इक बूंद च्र्नामित लेके कुटम्ब सहित बैकुंठ पठाऊ,
श्री शालिग्राम जी सुनो विनती हमारी
जो कुछ भोग मिले प्रबु मो कु भोग लगा के भोजन पाऊ,
जो कुछ पाप किया काया से परिकर्मा के साथ बहाऊ
श्री शालिग्राम जी सुनो विनती हमारी
डर लागत मोहे भवसागर को जम के द्वार प्रभु नही जाऊ
माधव दास आस प्रभु की हरी दासन को दास कहौउ
श्री शालिग्राम जी सुनो विनती हमारी