ॐ जय गिरिराज हरी, स्वामी जय गिरिराज हरी ।शरण तुम्हारी आये, करुणापूर्ण करि ।। ॐ
उपल देह से प्रगटे, भक्तन हितकारी स्वामी।इच्छा पूरण करते, तुम अन्तयाम। ॐ.
नील वरण तन सुन्दर, बोलसमुद्र वाणीप्रेम भरी हरी चितवन, निरखत छवि ॥ ॐ...
मोर मुकुट सिर सोहत मस्त पर चन्दन।गल वैजन्ती माला, काटे भव बन्दन।। ॐ...
जामा स्वेत मनोहर, पटका है पीला।अधरन वंशी बाजे, करते नर लीला।। ऊँ...
कोप कियो जब सुरपति, बृज पर अति भारी।मान घटाओ तुमने, सन्तन हितकारी ।। ॐ...
बृजवासिन से तुमने गिरवर पूजवाया।स्वयं पूजे प्रभु आपही, दिखलायी माया ।। ॐ...
गोप गऊ ब्रज बालक, सब के रूप धरे।ब्रह्मा मोहे पल में, तिन के कष्ट हरे।। ॐ...
मुरलीधर जब मुरली, अधरन अधर धरी ।बृजवाला सब मोहे, इच्छा पूर्ण करि ।। ॐ...
जो बृजपति की आरती, प्रेम सहित गावै।भक्ति पदार्थ काशी, मुक्ति फल पावे।। ॐ...
ॐ जय गिरिराज हरी, स्वामी जय गिरिराज हरी ।शरण तुम्हारी आये, करुणा पूर्ण करि ।। ॐ...
पार ब्रह्मा परमात्मा, पूर्ण कृष्ण भगवान।तुम्ही एक निरगुण सगुण, कहते वेद पुराण |आरथा अरथी आरती, जिज्ञासु पार।भक्तों के हित के लिये लिया मनुज अवतार |