जया एकादशी पर जो भी भक्त भगवान श्री विष्णु और माँ लक्ष्मी की पूजा आराधना करता है, उन भक्तों के सभी कष्ट मिट जाते हैं हमारे भगवान की विशेष कृपा प्राप्त करते हैं।
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।
पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी का व्रत किया जाता है। 8 फरवरी 2025 यानी की आज जया एकादशी मनाई जा रही है। कहाँ जाता है जो भी भक्त जया एकादशी का व्रत/उपवास करता है, उस भक्त को मृत्यु के बाद कर्मो के फेर से मुक्ति मिल जाती है और भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा पाकर मोक्ष प्राप्त होता है। जो भक्त व्रत करने में सक्षम नहीं है वह इस दिन केवल जया एकादशी की व्रत कथा सुन कर भी भगवान श्री विष्णु की कृपा प्राप्त कर सकता है तथा भक्त के भाग्य में स्मृद्धि आती है।
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण जी से पूछा कि ये माघ मास की एकादशी का क्या महत्व है, इसके उत्तर मे श्री कृष्ण ने कहा कि इसे जया एकादशी कहते हैं और इस दिन सच्चे भाव से व्रत/उपवास रखने से व्यक्ति को भूत-पिशाच की योनि का भय नहीं रहता है। जया एकादशी के बारे में भगवान कृष्ण ने कहा कि एक बार कि बात है जब नंदन वन में उत्सव चल रहा था, इस उत्सव में सभी देवतागण और सिद्ध संत उपस्थित थे। माना जाता है कि यहां चल रहे कार्यक्रम में गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं।
इस समय नृत्यांगना पुष्पवती सभा में गायन कर रहे माल्यवान नाम के गंधर्व पर मोहित हो गयी। इसके बाद वह अपने प्रबल आकर्षण के कारण सभा की सभी मर्यादा को भूलकर नृत्य करने लगी थी। वह इस तरह से नृत्य कर रही थी, माल्यवान भी उसकी ओर आकर्षित हो जाए। फिर माल्यवान भी उसकी ओर आकर्षित होते हुए अपनी सुध-बुध खो बैठा और वह अपनी गायन की मर्यादा से भटक गया। दोनों के इस अपकर्म से क्रोधित देवराज इन्द्र ने उन्हें श्राप दे दिया था। माना जाता है कि वह श्राप था कि वह दोनों ही स्वर्ग से वंचित हो जाएं, इतना ही नहीं पृथ्वी पर अति नीच पिशाच योनि को प्राप्त हो। कहते हैं कि देवराज इन्द्र के श्राप के प्रभाव से वह दोनों पिशाच बन गए।
फिर एक दिन वह दोनों ही अत्यंत दुखी थे, जिस कारण उन्होंने सिर्फ फलाहार का सेवन किया। उसी दिन रात को ठंड के कारण उन दोनों की मृत्यु हो भी गई। ऐसा माना जाता है कि उस दिन संयोग से माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। इसलिए जाने अनजाने में जया एकादशी का व्रत होने पर उन दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति प्राप्त हो गई और मुक्ति मिलने के बाद वह दोनों पहले से भी कई ज्यादा सौंदर्यवान हो गए, साथ ही उन्हें पुन: स्वर्ग लोक में स्थान भी प्राप्त हो गया। इस बात से आश्चर्यचकित देवराज इंद्र ने उन दोनों से पूछा कि आखिर तुम इस श्राप से कैसे मुक्त हुए। देवराज इंद्र के सवाल का उत्तर देते हुए गंधर्व ने बताया कि यह भगवान विष्णु की जया एकादशी के व्रत का प्रभाव है।