वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।। मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
शीतला माता एक प्रसिद्ध हिंदू देवी हैं। प्राचीन काल से ही इनका बहुत सम्मान किया जाता रहा है। स्कंद पुराण में, शीतला देवी के वाहन को गदरभ (गधा) के रूप में वर्णित किया गया है। वह अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रखती हैं।
एक बुढ़िया माई थी जो बसौड़ा को ठण्डी रोटी खाती और शीतला माई की पूजा करती। गाँव में कोई भी पूजा नहीं करता था। बसौड़ा के दिन सारे गाँव में आग लग गई और सारा गाँव जल गया, परंतु बुढ़िया माई की झोपड़ी बच गई। सबने बुढ़िया माई के पास आकर पूछा- 'सबके घर जल गए, तुम्हारा क्यों नहीं जला ? क्या बात है?' बुढ़िया बोली- 'मैंने बसौड़ा को ठंडी रोटी खाई थी और शीतला माई की पूजा करी थी और किसी ने ऐसा नहीं किया। इसलिए मेरी झोपड़ी तो रह गई और तुम्हारे घर जल गए।'
सारे गाँव में ढिंढोरा पिटवा दिया कि बासौड़ा के दिन सभी को एक दिन पुरानी रोटी खानी चाहिए और शीतला माई की पूजा करनी चाहिए और शीतला माता की कहानी का पाठ करना चाहिए। माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए एक दिन पहले ही भोजन बना लें।हे शीतला माई! जैसे बुढ़िया माई की रक्षा करी वैसे ही हम सबकी रक्षा करना। सबके बाल-बच्चों की रक्षा करना।