हमारे सनातन धर्म में किसी भी कार्य के लिए शुभ व शुद्ध मुहूर्त की अनिवार्य आवश्यकता बताई गई है, विशेषकर विवाह, गृहप्रवेश, गृहारंभ, मुंडन, द्विरागमन आदि में। किंतु कई बार ऐसी ग्रह स्थितियों का निर्माण हो जाता है कि अपेक्षानुसार हमें शुभ व शुद्ध मुहूर्त नहीं मिल पाता है। ऐसी परिस्थिति में मन दुविधाग्रस्त हो किंतर्व्यविमूढ़ हो जाता है।
इस संशयग्रस्त स्थिति से निपटने के लिए हमारे शास्त्रों में कुछ विशेष मुहूर्त का उल्लेख है जिनमें विशेष दिन के अनुसार बनते हैं एवं इन मुहूर्तों में अन्य किसी ग्रह स्थिति का परीक्षण करने की आवश्यकता ही नहीं होती, केवल इन दिनों का होना ही पर्याप्त होता है। ऐसे विशेष मुहूर्तों को हमारे मुहूर्त-शास्त्र में 'साढ़े तीन मुहूर्त', 'स्वयंसिद्ध मुहूर्त' या 'अबूझ मुहूर्त' के नाम से जाना जाता है।
आज हम 'वेबदुनिया' के पाठकों को इन 'अबूझ' मुहूर्तों के विषय में जानकारी देंगे। इन मुहूर्तों की संख्या प्रतिवर्ष 'साढ़ेतीन' की होती है इसलिए इन्हें लोकाचार की भाषा में 'साढ़ेतीन' मुहूर्त भी कहा जाता है। कुछ विद्वान 'रविपुष्य' व 'गुरुपुष्य' को भी इस श्रेणी में मान्य करते हैं किंतु हम यहां स्पष्ट कर दें कि शास्त्रानुसार 'रविपुष्य' एवं 'गुरुपुष्य' अबूझ मुहूर्त की श्रेणी में नहीं आते हैं।
'स्वयंसिद्ध मुहूर्त' या 'अबूझ मुहूर्त'
1. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा/ चैत्र नवरात्रि घटस्थापना/ हिन्दू वर्षारंभ)
2. वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया/ आखातीज)
3. आश्विन शुक्ल दशमी (विजयादशमी/ दशहरा)
4. कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का अर्द्धभाग/
(मतातंर से देवउठनी एकादशी)
उपर्युक्त मुहूर्तों में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, वैशाख शुक्ल तृतीया, आश्विन शुक्ल दशमी पूर्ण दिवस एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का अर्द्धभाग शुभ होने से इन्हें 'साढ़े तीन' मुहूर्त भी कहा जाता है।
शास्त्रानुसार 'स्वयंसिद्ध' या 'अबूझ' मुहूर्त के अतिरिक्त विवाह में कार्तिक पूर्णिमा को विशेष मुहूर्त के तौर पर मान्य किया जाता है। जब विवाह का शुद्ध मुहूर्त न बन पा रहा तो कार्तिक पूर्णिमा के पूर्व व पश्चात के 5 दिन विवाह के लिए उपयुक्त माने गए हैं। यहां तक कि कुछ विद्वानों ने तो इन मुहूर्तों में त्रिबल शुद्धि व गुरु-शुक्रास्त को भी विचारणीय नहीं माना है लेकिन यह मुहूर्त केवल 'आपातकाले मर्यादा नास्ति...' के सिद्धांत अनुसार कुछ विशेष परिस्थितियों में ही ग्राह्य होते हैं।
मुहूर्त शास्त्र में 'गोधूलि' लग्न को 'स्वयंसिद्ध' मुहूर्त के तौर पर मान्यता प्रदान की गई है। जब विवाह का दिन सुनिश्चित हो जाए और पाणिग्रहण हेतु शुद्ध लग्न की प्राप्ति न हो तो 'गोधूलि' लग्न की ग्राह्यता शास्त्रानुसार बताई गई है। 'गोधूलि लग्न' सूर्यास्त से 12 मिनट पूर्व एवं पश्चात कुल 24 मिनट अर्थात 1 घड़ी की होती है। मतांतर से कुछ विद्वान से इसे सूर्यास्त से 24 मिनट पूर्व व पश्चात कुल 48 मिनट का मानते हैं लेकिन शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है कि 'गोधूलि लग्न' की ग्राह्यता केवल आपात परिस्थिति में ही होती है। जहां तक संभव हो, शुद्ध लग्न को ही प्राथमिकता देना चाहिए।