||ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
निराकार ज्ञान गम्य, न स्थूल, न सूक्ष्म।
निर्विकार निर्मल, भक्तवत्सल मृत्युंजय।
प्रकृति और पुरूष, जिन के शरीर से प्रकट हुए।
चरणों से देव, दिखा, सूर्य-चन्द्रमा आप ही विद्या, परब्रह्म तुम ही हो।
आपकी जय हो, मृत्युंजय की जय हो।
त्युंजय महादेव की जयऽऽऽऽऽ हो॥
उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
आकाश, पृथ्वी, दिशा, जल, तेज तथा काल मृत्यंजय तुम ही हो, साकार - निराकार ॥
परमेश्वर, सद्ब्रह्मा, परब्रह्मा, महेश्वर। ऐसे गणाध्यक्ष, उमापति, त्रिनेत्र, विश्वेश्वर ॥
महामृत्युंजय रूद्र ईश्वर।
ॐ ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
ॐ अम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 14 उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
अम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्यार्मुक्षीय मामृतात्
आपको ध्याऊ तो पाप हर जाए। छल कपट लोभ ईर्ष्या मोह मिट जाए ॥
तू ही साकार- निराकार55555 तू है। जग का आधार तू ही तू है ।
तेरी वन्दना मैं किस मुहं करूँ तेरे दर्शन की चाह मैं करूं॥
त्युंजय तेरी जय हो ऽऽऽऽऽ | महादेव की जय हो ऽऽऽऽऽ ॥
स्थिति उत्पत्ति लय सबके तुम कारण! सब कष्टों का तुम हो निवारण॥
मृत्युंजय नाम का अमृत पिलाओ। लक्ष्यहीन जीवन, मार्ग दिखाओ॥
नश्वर संसार से मुक्ति दिलाओ। सहजानन्द नाथ कहें, व्याधि से छुड़ाओ ॥
मृत्युंजय तेरी जय हो ऽऽऽऽऽ महादेव की जय हो ऽऽऽऽऽ ॥