कुबेर अर्ध-दिव्य यक्षों के देवता-राजा हैं।, भारतीय संस्कृति में धन और समृद्धि के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। वे हिन्दू पौराणिक कथाओं में यक्षराज के रूप में प्रसिद्ध हैं और लंकापुरी में उनका राज्य था। कुबेर के पास अत्यधिक धन था और उन्हें "धनाधिपति" कहा जाता है। वे अकेले धन के भंडारों के स्वामी थे, जिनके पास जरुरत से अधिक धन था।
कुबेर के विचार के पीछे छिपे कई नकारात्मक पहलू हैं, जिन्हें हमें ध्यान में रखना चाहिए।
कुबेर की विशेष पहचान लालच के साथ जुड़ी है। उन्हें धन की लालच के संकेत के रूप में दिखाया गया है, और यह लालच लोगों को धन की भाग्यशाली दिशा से हटाकर उन्हें आत्मात्याग के बजाय सिर्फ धन की प्राप्ति के पीछे दौड़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
कुबेर को अकेले ही संपत्ति के मालिक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे यह संदेश मिल सकता है कि धन केवल एक ही व्यक्ति के पास हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप, अन्य लोग भिन्न-भिन्न कारणों से धनरूपी संपत्ति के प्रति असहमत हो सकते हैं, जिससे समाज में असमानता और विभिन्नता उत्पन्न हो सकती है।
कुबेर की कथा यह सिखाती है कि धन के प्राप्ति के लिए आत्मात्याग की अभाव हो सकता है। यह धर्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों के खिलाफ है, क्योंकि धन केवल आत्मा के विकास के लिए ही नहीं होता है, बल्कि समाज के हित में भी होना चाहिए।