जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं
शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं
नभोनीलकायं दुरावारमायं
सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं ।। १।।
सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं
जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं
हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं ।।२।।
रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं
जलान्तर्विहारं धराभारहारं
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं
ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं ।।३।।
जराजन्महीनं परानन्दपीनं
समाधानलीनं सदैवानवीनं
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं
त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं ।।४।।
कृताम्नायगानं खगाधीशयानं
विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं
स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं
निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं ।।५।।
समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं
जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं
सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ।।६।।
सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं
गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं
महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं ।।७।।
रमावामभागं तलानग्रनागं
कृताधीनयागं गतारागरागं
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं
गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ।।८।।
।। फलश्रुति ।।
इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं
पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं
जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो ।।९।।
1:
जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं - जगत् का पालन करने वाले, गर्दभदंड (सर्प) के गले में लटका हुआ मणि माला
शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं - चंद्रमा के समान चमकते शर (तीर) के सिर माला, महादैत्यों को नष्ट करने वाले
नभोनीलकायं दुरावारमायं - नील रंग के शरीर वाले, दुरावार को नष्ट करने वाले
सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं - सुंदर पद्मों की सहायता से, मैं तुझे भजता हूँ, भजता हूँ
2:
सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं - सदा अम्बर में वास करने वाले, लटकते हुए पुष्पों की हँसी
जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं - जगत् के निवास स्थान, सूर्य के समान प्रकाशमय
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं - गदा, चक्र, शस्त्र के सजे हुए पीतम्बर
हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं - हंस के सुन्दर चेहरे, मैं तुझे भजता हूँ, भजता हूँ
3:
रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं - रमा के कंठमाला, श्रुति और व्रतों का सार
जलान्तर्विहारं धराभारहारं - जल में विहार करने वाले, पृथ्वी का भार हरने वाले
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं - चिदानंद के स्वरूप में आनंदित, मनोहारी स्वरूप
ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं - अनेक रूप धारण करने वाले, मैं तुझे भजता हूँ, भजता हूँ
4:
जराजन्महीनं परानन्दपीनं - जरा और जन्म से मुक्त, परमानंद में पूर्ण
समाधानलीनं सदैवानवीनं - समाधान में लीन, सदा नवीन (नवचैतन्य) रहने वाले
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं - जगत् के जन्म का कारण, सुरों के सेनापति
त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं - तीनों लोकों का सेतु, मैं तुझे भजता हूँ, भजता हूँ
5:
कृताम्नायगानं खगाधीशयानं - कृताम्नाय (वेद) के गान, खगेश्वर (गरुड़) के सवारी
विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं - मुक्ति का निदान, हरि के वाहन (गरुड़) का मान
स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं - अपने भक्तों के पक्ष में स्थित, जगत्के वृक्ष की जड़
निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं - दुःख और आर्ति के शूल से मुक्त, मैं तुझे भजता हूँ, भजता हूँ
6:
समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं - समस्त अमरों के ईश्वर, द्वारिकाधीश (कृष्ण) के प्रेमी
जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं - जगत् के विभुति का शासक, ह्रदय और आकाश की सीमा में स्थित
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं - सदा दिव्य शरीर में स्थित, सभी शरीरों से मुक्त
सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं - वैकुण्ठ के आवास, मैं तुझे भजता हूँ, भजता हूँ
7:
सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं - सुरों के बल में स्थित, तीनों लोकों के वरिष्ठ
गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं - गुरुओं का गर्वभारी, स्वरूप के एकान्त में स्थित
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं - सदा युद्ध के धीर, महावीरों के वीर
महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं - महाम्भोधि (क्षीर सागर) के तीर, मैं तुझे भजता हूँ, भजता हूँ
8:
रमावामभागंशशिनीलदेहं - रमा की वाम भाग (अर्धांगी), शशि के नील रंग वाले शरीर
कम्बुकण्ठभागं विष्णुरुपादेहं - कम्बु वदन भाग, विष्णु के रूप में स्थित शरीर
वामाङ्गकेशं चरणाम्बुजेशं - वाम भाग के इष्ट देव, पाद-अम्बुज के स्वामी
वन्देऽहं जगदेकं भजेऽहं भजेऽहं - मैं तुझे वंदन करता हूँ, जगत् के एक स्वामी को भजता हूँ, भजता हूँ
स्तोत्र का अर्थ: जो व्यक्ति मन को संयमित करके इस अष्टक (स्तोत्र) को नित्य गले में माला के रूप में धारण करके पढ़े, वह व्यक्ति भगवान विष्णु के शोकरहित स्थायी स्वर्ग को प्राप्त होता है और बुढ़ापे और जन्म के दुःख को फिर से नहीं प्राप्त करता है।
श्री हरि स्तोत्र क्या है?
श्री हरि स्तोत्र (Shri Hari Stotra) एक प्रमुख स्तोत्र है जो हिंदू धर्म में प्रयोग होता है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु (हरि) की महिमा और गुणों की प्रशंसा करने के लिए गाया जाता है। इस स्तोत्र का प्रयोग भक्ति और पूजा के साथ किया जाता है, और इसके पाठ से विष्णु भक्ति में उत्साह एवं स्थिरता का विकास होता है।
श्री हरि स्तोत्र के पठन से भक्त विष्णु के गुणों की महिमा, अनंतकोटि ब्रह्मांडों में व्याप्त उनकी महत्त्वपूर्णता, उनके अवतारों का वर्णन, उनकी शक्तियों की प्रशंसा, और उनके भक्तों की सेवा का महत्व समझते हैं। इस स्तोत्र के द्वारा विष्णु भक्ति में समर्पण और उनकी कृपा की प्राप्ति का अनुरोध किया जाता है।
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