सांजी, संजा, संइया और सांझी जैसे भिन्न-भिन्न प्रचलित नाम अपने शुद्ध रूप में संध्या शब्द में से ही प्रचलित हुए है
सांझी पर्व (Sanjhi Festival) प्रमुख पर्व है जो भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है। इस समय भारत वर्ष में कई पर्व एक के बाद आते है और सब जगह रौनक व उत्साह छाया रहता है। पहले श्राद्ध पूजा, फिर सांझी पर्व की शुरूआत, साथ साथ मे नवरात्री, फिर रामलीला प्रस्तुति, अंत मे भव्य झांकियां और दशहरा पर्व के दिन ही (सोलह दिन के अंत मे अमावस्या को) संझा देवी को विदा किया जाता है।
सोलहवें दिन अमावस्या को संझा देवी को दीवार से उतारकर मिट्टी के घड़े में बिठाया जाता है। उसके आगे तेल या घी का दिया जलाते हैं। फिर सभी मिलकर संझा देवी को गीतों के साथ विदा करने जाते हैं। विसर्जन करने जाते समय पूरे रास्ते सावधानी बरती जाती है क्योंकि रिवाज है कि नटखट लड़के घड़े को फोड़ने का प्रयास करते रहेंगे, लेकिन सभी लड़कियों को विसर्जन करने तक घड़े की रक्षा करनी होती है। पूरे रास्ते भर हंसी-ठिठोली, नाच, गीत किया जाता है। संझा माई को विदा करने के बाद प्रसाद बांटा जाता है।
आज मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता (भगवान कार्तिकेय की माता) की पूजा आराधना की जाएगी, माँ दुर्गा का यह स्वरूप बहुत ही सौम्य और करुणा से भरा है, स्कंदमाता की गोद में कार्तिकेय विराजित है, माँ की सच्चे मन से आराधना करने वाले भक्तों के सभी कष्ट मिट जाते हैं।