ॐ नारायणाय नमः
त्रेता में युग एक धर्मात्मा राजा थे उनका नाम दशरथ था और उनकी राजधानी अयोध्या थी। एक बार वे शिकार खेलने गए तो उनका शब्दवेधी बाण एक ऋषिपुत्र को जा लगा जो सरयू में से अपने अंधे माता-पिता के लिए जल लेने आया था। उसका नाम श्रवण कुमार था। वाण के लगते ही वह अचेत हो गया। राजा जब वहाँ पहुंच ता उसने पूरी बात सुनाकर राजा से अपने माता-पिता को पानी पिला देने को प्रार्थना की और इसके साथ ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए।
राजा श्रवण के अंधे माता-पिता के पास पहुँचे और पानी पिलाक घटित हुई घटना का वर्णन कर दिया। अंधे पिता ने राजा का शाप दिया-"जिस प्रकार पत्र-शोक से मैं मर रहा हूँ, उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र-शोक से होगी।"
दशरथ ने पुत्र-प्राप्ति के लिए यज्ञ किया तो श्रीरामचन्द्र पुत्र के मृत्यु भी पुत्र शोक से होगी।" रूप में जन्मे। जव राम का वनवास हआ और सीता-हरण हो गया तो रावण में युद्ध करते हुए जटायु की मृत्य हो गई। जटायु के भाई संपाति ने सीता की खोज के लिए बताया कि वह रावण की अशोक वाटिका सुनाया। राम ने लंका विजय करके जानकी को वहाँ से मुक्त किया।