फाल्गुन संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और भगवान गणेश को फूल और चावल चढ़ाकर व्रत का संकल्प लें। हिंदू वर्ष के अंतिम महीने में इस शुभ दिन को मनाने से सच्चे मन से की गई पूजा से विशेष आशीर्वाद और फल की प्राप्ति होती है।
संकष्टी चतुर्थी के व्रत में गणेश जी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। फाल्गुन का महीना हिंदू वर्ष का आखिरी महीना होता है। इस महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी या संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा की जाती है. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि के अलावा अमृत सिद्धि नामक एक शुभ योग भी होता है। ऐसे में भगवान गणेश की पूजा और व्रत करना बेहद फायदेमंद रहेगा।
सतयुग की बात है। तब एक धर्ममातमा राजा का राज्य था। वह राजा बडा धर्ममातमा था। उसके राज्य में एक अत्यंत धर्मरमातमा ब्राह्मण था उसका नाम था-विष्णु शर्मा।
विष्णु शर्मा के 7 पुत्र थे । वे सातों अलग-अलग रहते थे। विष्णु शर्मा की जब वृद्धिवस्था आ गई तो उसने सब बहुओं से कहा - तुम सब गणेश चतुर्थी का व्रत किया करो । "विष्णु शर्मा स्वयं भी इस व्रत को करता था।" अब बूढा हो जाने पर यह दायित्व वह बहुओं को सौंपना चाहता था ।
जब उसने बहुओं से इस व्रत के लिए कहा तो बहुओं ने नाक - भोहं सिकोड़ते हुए उसकी आज्ञा न मानकर उसका अपमान कर दिया। अंन्त में छोटी बहू ने अपने ससुर की बात मान ली। उसने पूजा के सामान की व्यवस्था करके ससुर के साथ व्रत किया और भोजन नहीं किया। ससुर को भोजन करा दिया। जब आधी रात बीती तो विष्णु शर्मा को उल्टी और दस्त लग गए। छोटी बहू ने मल-मूत्र से खराब हुए कपड़ों को साफ करके ससुर के शरीर को धोया और पोंछा। पुरी रात बीना कुछ खाये-पिए जागती रही।
गणेश जी ने उन दोनों पर अपनी कृपा की। ससुर का स्वास्थ्य ठीक हो गया और छोटी बहू का घर धन-धान्य से पूर्ण करा दिया। फिर तो अन्य बहुओं को भी इस घटना से प्रेरणा मिली और उन्होंने भी गणेश जी का व्रत किया।
बारह मास शुक्ल चतुर्थ व्रत कर दान-दक्षिणा देने से परम कारुणिक गणेश देव समस्त कामनाओं की पूर्ति कर जन्म-जरा-मृत्यु के पाश नष्ट कर अंत में अपने दिव्य लोक में स्थान दे देते हैं।