होली के दूसरे दिन गणगौर(गनगौर) पूजने वाली लड़कियाँ होली की राख की पिण्डियाँ बनाएँ। आठ पिण्डियाँ गोबर की बनाएँ और एक छोटी सी डलिया में दूब रखकर पिण्डियाँ रख लें। दिन में गीत गाएँ और लड़कियाँ पूजन कर लें। दीवार पर जितनी बार गनगौर पूजें उतने दिन रोज़ एक काजल की और एक रोली की टिक्की कर दें। जल, रोली, चावल, फूल, दूब चढ़ाएँ। गनगौर आने के बाद गणगौर को दातन दें, गीत गाएँ और जितने दिन तक बसोड़ा नहीं है उतने दिन तो पिण्डियाँ पूजें। बसोड़े के दिन, दिन में गनगौर बनाएँ। उस दिन से रोज दिन में गनगौर को भोग लगाएँ, जल पिलाएँ और रात को गनगौर के गीत गाएँ। सुबह पिण्डी और गनगौर दोनों चीज़ों का पूजन करें।
एक राजा था। एक माली था। राजा ने चना बोया और माली ने दूब बोई। राजा का चना बढ़ता गया परंतु माली के यहाँ दूब घटती गई। तब माली ने सोचा कि क्या बात है जो राजा के यहाँ तो चना बढ़ता जा रहा है और मेरी दूब घटती जा रही है ? एक दिन वह छुपकर बैठ गया। और देखा कि लड़कियाँ दूब लेने आईं तो उसने लड़कियों को रोक लिया और पूछा- 'तुम मेरी दूब क्यों ले जाती हो ?' और उनकी घाघरा ओढ़नी छीन ली । तब लड़कियाँ बोलीं- 'हम सोलह दिन गनगौर पूजती हैं तो हमारा घाघरा ओढ़नी दे दे। सोलह दिन के बाद गनगौर की पूजा होती है। उस दिन हम तुम्हें लापसी का कुण्डारा भरकर दे देंगी।' माली ने सबके कपड़े दे दिए।
सोलह दिन पूरे हो गए। तब लड़कियाँ हलवा लापसी का कुण्डारा भरकर माली को दे आई और थोड़ी देर में माली का लड़का आया और बोला- 'माँ! मुझे बहुत भूख लगी है।' तो माँ बोली- 'आज तो लड़कियाँ बहुत सारा हलवा लपसी का कुण्डारा भरकर दे गई हैं। वह पड़ा है उसे खा ले।' बेटा ओवरी खोलने लगा तो उससे नहीं खुली। तब माँ ने चीतल उंगली का छींटा दिया तो वह खुल गई और देखा कि इसर जी तो पेट बाँट रहे हैं और गौरा चरखा कात रही है और सारी चीज़ों से भंडार भरा हुआ है। भगवान इसर जैसा भाग्य दे, गौरा जैसा सुहाग दे। कहते-सुनते सारे परिवार को दे।