जानिए फाल्गुन पूर्णिमा पर होने वाला होलिका दहन की पौराणिक कथा, भक्त प्रह्लाद के जन्म से लेकर उनकी भगवान विष्णु के प्रति अटूट भक्ति की कहानी। यह कथा बुराई पर अच्छाई की विजय को दर्शाती है।
होलिका दहन Day : | 13 मार्च 2025 |
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शुभ मुहूर्त : | रात्रि काल 11 बजकर 26 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट तक |
नारद पुराण के अनुसार, हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु जब गर्भवती थीं, तब देवताओं ने हिरण्यकश्यप के अत्याचार से तंग आकर उसके परिवार पर आक्रमण किया। कयाधु को बंदी बना लिया गया। उसी समय देवर्षि नारद वहां आए और कयाधु को बचाया। उन्होंने कयाधु को अपने आश्रम में शरण दी और उन्हें भगवान विष्णु की महिमा का ज्ञान दिया।
कयाधु ने गर्भ में पल रहे प्रह्लाद को नारद मुनि की बताई हुई भगवान विष्णु की कथा और मंत्रों का प्रभाव दिया। इसी कारण प्रह्लाद के जन्म से ही भगवान विष्णु के प्रति गहरी भक्ति थी।
हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से ऐसा वरदान प्राप्त किया जिससे वह न दिन में मरेगा, न रात में, न मनुष्य द्वारा और न ही पशु द्वारा। इस वरदान के कारण उसका अहंकार चरम पर पहुंच गया और उसने खुद को ईश्वर मान लिया। उसने अपने राज्य में भगवान की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया।
लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। जब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को भगवान की पूजा से हटाने की कोशिश की, तो प्रह्लाद ने साफ मना कर दिया। यह देखकर हिरण्यकश्यप ने क्रोध में आकर प्रह्लाद को मारने के अनेक प्रयास किए।
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को ऊंची पहाड़ी से फेंकने, विष का प्याला पिलाने और जंगली हाथियों से कुचलवाने की कोशिश की। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर बार सुरक्षित बच गए।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठने की योजना बनाई। प्रह्लाद पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु का नाम जपते रहे। जैसे ही आग धधकने लगी, होलिका का वरदान निष्क्रिय हो गया और वह जलकर भस्म हो गई। लेकिन प्रह्लाद सुरक्षित रहे।
यह घटना बुराई पर अच्छाई और भगवान की भक्ति की अटूट शक्ति का प्रतीक बन गई। तभी से हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन मनाया जाता है। लोग लकड़ी और गोबर के उपले इकट्ठा कर अग्नि जलाते हैं, जो नकारात्मकता और बुराई के विनाश का प्रतीक है। अगले दिन रंगों के पर्व होली का उल्लास मनाया जाता है।