कार्तिक अमावस्या के दिन सभी पशु-पक्षी आंखे बिछाए लक्ष्मीजी की राह निहारने लगे। रात्रि में जैसे ही लक्ष्मीजी धरती पर पधारी उल्लू ने अंधेरे में अपनी नजरों से उन्हें देख लिया और उनके समीप पहुंच गया। इसके बाद उल्लू लक्ष्मी जी की प्रार्थना करने लगा कि वो उसे ही अपना वाहन चुन लें। लक्ष्मीजी ने चारों ओर देखा उन्हें कोई भी पशु या पक्षी नजर नहीं आया तो उन्होंने उल्लू को अपना वाहन स्वीकार कर लिया। तभी से लक्ष्मी जी को उलूक वाहिनी कहा जाने लगा। उल्लू, जिसके बारे में मान्यता है कि उल्लू की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।