अनेक जन्म संशुद्धा योगिनाअनुगृहान्मम। प्रविशन्तु तनुं देवी मदीयां मुक्तिदायिकाम।।
मुक्तेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर के सर्वोच्च बिंदु के ऊपर स्थित है। यह मंदिर मुक्तेश्वर धाम या मुक्तेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए पत्थर की सीढ़ियों से पहुंचा जा सकता है और यह मंदिर समुद्र तल से 2315 मीटर की ऊँचाई पर कुमाऊं पहाड़ियों में है । मुक्तेश्वर का नाम 350 साल पुराने शिव के नाम से आता है, मंदिर के निकट चौली की जाली नामक एक चट्टान है । पुराणों में शालीनता के रूप में, यह भगवान शिव के अठारह मुख्य मंदिरों में से एक है।
मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, मुक्तेश्वर महादेव मंदिर में एक तांबा योनि के साथ एक सफेद संगमरमर का शिवलिंग है। शिवलिंग को ब्रह्मा, विष्णु, पार्वती, हनुमान, गणेश और नंदी की मूर्तियों से घिरा हुआ है । इस स्थान में आकर भक्तो को आत्मिक और मानसिक शान्ति प्राप्त होती है । यहां शिव की पत्नी, हिमालय पुत्री पार्वती स्वरूप नंदादेवी से लेकर शिव के प्रिय त्रिशूल और पांडवों से संबंधित इतिहास रखे पंचाचूली की चोटियां नजर आती हैं।
भगवान मुक्तेश्वर महादेव की महिमा मुक्ति के मार्ग की ओर इंगित करती है। स्वयं तेजस्वी जितेन्द्रिय ब्राह्मण भी तेरह वर्षों की तपस्या के बाद महाकाल वन में आकर मोक्ष का मार्ग पा सके।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में मुक्ति नामक एक जितेन्द्रिय ब्राह्मण थे। मुक्ति की कामना से वे नित्य तपस्या में लीन रहते थे। तपस्या में आसक्त हुए उन्हें 13 साल हो गए। फिर एक दिन वे स्नान करने के लिए महाकाल वन स्थित पवित्र क्षिप्रा नदी पर गए। क्षिप्रा में उन्होंने स्नान किया फिर वे वहीँ नदी के तट पर जप करने लगे। तभी उन्होंने वहां एक भीषण देह वाले मनुष्य को आते हुए देखा जिसके हाथ में धनुष बाण था। वहां पहुंच कर वह व्यक्ति ब्राह्मण से बोला कि वह उन्हें मारने आया है। उसकी बात सुन ब्राह्मण भयभीत हुए एवं नारायण भगवान का ध्यान लगा कर बैठ गए।
ब्राह्मण के तप के भव्य प्रताप से उस दुष्ट व्यक्ति ने धनुष बाण फैक दिए और बोला कि – 'हे ब्राह्मण, आपके तप के प्रभाव से मेरी बुद्धि निर्मल हो गई है। मैंने बहुत दुष्कर्म किए हैं लेकिन अब मैं आपके साथ तप कर मुक्ति प्राप्त करना चाहता हूं।'
ब्राह्मण के उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर वह व्यक्ति वहीं बैठ कर भगवान का ध्यान करने लगा। उसके तप के फलस्वरूप वह मुक्ति को प्राप्त हो गया। यह देख ब्राह्मण आश्चर्यचकित रह गए और सोचने लगे कि उनको इतने वर्षों के तप बाद भी मुक्ति नहीं मिली। ऐसे विचार कर ब्राह्मण नदी के मध्य जल में जाकर जप करने लगे।
कुछ दिनों तक वे ऐसे ही जप करने लगे फिर एक बाघ वहां पर आया जो जल में खड़े ब्राह्मण को खाना चाहता था। तब ब्राह्मण ने ‘नमो नारायण’ का उच्चारण शुरू कर दिया। ब्राह्मण के मुख से निकले नमो नारायण के उच्चारण सुनते ही वह बाघ अपनी देह त्याग उत्तम पुरुष के रूप में परिवर्तित हो गया। ब्राह्मण के पूछने पर उसने बताया कि पूर्वजन्म में वह दीर्घबाहु नाम का प्रतापी राजा था और वह समस्त वेद वेदांत में पारंगत था। इस पर वह अभिमान करता था और ब्राह्मणों को कुछ नही समझता था। ब्राह्मणों के अनादर करने पर उन्होंने क्रोधित हो उसे शाप दिया कि वह वह बाघ योनि को प्राप्त हो कष्ट भोगेगा। तब उसने ब्राह्मणों की स्तुति की एवं कहा- हे ब्राह्मण श्रेष्ठजन, में आप सभी का तेज जान गया हूं। आप ही में से अगस्त्य मुनि ने समुद्र को जब अभिमान हुआ तो उसे पीकर खारा कर दिया था। उसका जल पीने योग्य नहीं रहा। ब्राह्मणों के शाप से ही वातापि राक्षस नष्ट हुआ। भृगु ऋषि के क्रोध से सर्व भक्षी अग्नि हुआ। गौतम मुनि के शाप से इंद्र सहस्त्रयोनि हुए। ब्राह्मणों के शाप से विष्णु को भी दस अवतार लेने पड़े। च्यवन मुनि की कृपा से देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमारों को सोमरस पीने को मिला। ब्राह्मणों के पराक्रम के ऐसे वचनों को कहता हुआ वह बारम्बार ब्राह्मणों से क्षमा याचना करने लगा।
उसकी प्रार्थना से ब्राह्मण प्रसन्न हुए और बोले कि जब तुम क्षिप्रा नदी जाओगे और वहां जल में खड़े किसी ब्राह्मण के मुख से नमो नारायण कहते हुए सुनोगे तो तुम शाप से मुक्त हो बाघ योनि से भी मुक्त हो जाओगे। इस प्रकार ब्राह्मण के मुख से भगवान नारायण का नाम सुनकर उसकी मुक्ति हुई। तब ब्राह्मण उस राजा से बोले कि मेरी मुक्ति कैसे होगी? मुझे तप करते हुए वर्षों हो गए लेकिन अब तक मुझे मुक्ति का मार्ग नहीं मिला। तब उस राजा ने कहा कि आप कृपया महाकाल वन में स्थित मुक्तिलिंग के दर्शन करें। आगे वह बोला, मुक्तिलिंग की महिमा बताने वाले को भी मुक्ति प्राप्त होती है। तब राजा और ब्राह्मण दोनों महाकाल वन स्थित दिव्य मुक्तिलिंग के पास आए और उनके दर्शन मात्र से वे दोनों उस लिंग में समा गए जिससे उन्हें मुक्ति प्राप्त हुई।
SITA RAM SITA RAM SITA RAM KAHIYE, is bhajan ko sunne se bhakt ke man ko somya aur sakaratmak anubhav hota hai, is bhajan ko sunne matra se bhakt ko Mata Sita aur Shee Ram Chanda ki bhakti ek sath mil jati hai.
दैनिक जीवन में शिव चालीसा का सार आंतरिक शांति, शक्ति और स्पष्टता को बढ़ावा देता है। इसके छंदों का पाठ करने से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है, बाधाओं को दूर करने, तनाव कम करने और चुनौतियों के बीच शांति की प्रेरणा मिलती है। यह आध्यात्मिक विकास और कल्याण के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है
Bhagwan Shiv Bhajan jisme prabhu ke ant or anant se lekar shiv ji ko Mahesh bhi kahte hai.