पूजा में विशेष तौर पर काले तिल का प्रयोग किया जाता है। षटतिला एकादशी का व्रत करने से धन-धान्य और समृद्धि मिलती है और मोक्ष भी प्राप्त होता है। जो लोग षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं उनको षटतिला एकादशी की व्रत कथा का पाठ भी जरूर करना चाहिए अन्यथा व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होता है।
काफी समय पहले की बात है एक नगर में एक ब्राह्मणी निवास करती थी वह श्री हरि भगवान विष्णु की भक्त थी। ब्राह्मणी भगवन विष्णु के प्रत्येक व्रत को पूरी श्रद्धा और नियम से करती थी। एक बार ब्राह्मणी ने श्रद्धा साहित्य पूरा एक माह का व्रत रखा. जिसके करने से उसका तन तो कमजोर हो गया लेकिन उसका मन एकदम शुद्ध हो गया. अपने भक्त के इस तरह के कथिन व्रत को देख भगवान विष्णु ने सोचा कि तन शुद्धि से इसे बैकुंठ तो प्राप्त हो जाएगा, लेकिन उसका मन तृप्त नहीं होगा. लेकिन ब्राह्मणी से अपने व्रत में एक भूल हो गई थी कि व्रत के समय उसने कभी भी किसी को कोई दान नहीं दिया था। इस वजह से उसे विष्णुलोक में तृप्ति नहीं मिलेगी। तब भगवान स्वयं उससे दान लेने के लिए उसके घर पर गए।
भगवान विष्णु उस ब्राह्मणी के घर भिक्षा लेने गए, तो उसने भगवान विष्णु को दान में मिट्टा का एक पिंड दे दिया। भगवान श्री हरि वहां से भिक्षा ले चले आए। इस जन्म में सभी आनंद भोग कर मृत्यु के बाद वह विष्णुलोक पहुंच गई. उसे वहां पर रहने के लिए एक कुटिया मिली। जिसमें कुछ भी नहीं था सिवाय एक आम के पेड़ के, उसने भगवान हरि विष्णु जी से पूछा कि मैंने जीवन भर इतने व्रत किए उनका क्या लाभ? उसे यहां पर खाली कुटिया और आम का पेड़ मिला. तब श्रीहरि ने कहा कि तुमने मनुष्य जीवन में कभी भी अन्न या धन का दान नहीं किया। यह उसी का परिणाम है. यह सुनकर उसे पश्चाताप होने लगा, उसने प्रभु से इसका उपाय पूछा।
तब भगवान विष्णु ने बताना शुरू किया कि जब देव कन्याएं तुमसे मिलने आयंगी। तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत करने की विधि विधान पूछना। जब तक वे इसके बारे में बता न दें तब तक तुम उन्हे कुटिया में आने मत देना, द्वार मत खोलना. भगवान विष्णु के बताए अनुसार ही किया या उस ब्राह्मणी ने कुटिया का द्वार नहीं खोला। हार कर देवकन्याओ ने शताब्दी व्रत की कथा या विधि ब्राह्मणी को सुनाई, देव कन्याओं से विधि जानने के बाद उसने भी षटतिला एकादशी व्रत (Shattila Ekadashi Vrat) किया. उस व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया में सभी आवश्यक वस्तुओं आदि से भर गई. ब्राह्मणी भी पहले से ज्यादा रुपवती हो गई।