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श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्। नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।। कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्। पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।
जगमग जगमग जोत जली है । राम आरती होन लगी है ।। भक्ति का दीपक प्रेम की बाती । आरती संत करें दिन राती ।।